कविता एक अधूरा सफर

एक सफर जो अधूरे सपनों तक जाता है 

मैं हर दिन संघर्ष करता हूं 

उन सपनों को सफर की मंजिल तक पहुंचाने की 

उनके लिए एक एक पल जीता हूं 

फिर सब कुछ भूल कर काम पर चल देता हूं 

काम कुछ मेहनत का नहीं है मेरा 

मैं बस उस सफर की एक सफल योजना बनाने में लगा हूं 

जिस सफर में मैं अनेक बार असफल हुआ हूं 

समय की गति फिर से बदल जाती है 

और मेरी पूरी सफल योजना मिट्टी में मिल जाती है 

यह सफर अंतिम असफ़ल योजना तक जाता है 

मैं टूट कर बिखर जाता हूँ 

अपने सपनों को फिर भूल जाता हूँ 

मुझे फिर से गिर कर उठने की आदत हो गई है 

और फिर से एक और आखिरी असफल योजना बनाने का अभ्यास जारी है 

-अरुण चमियाल 

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