सतलोक की ट्रेन

एक सुबह जब सूरज अपनी नींद से जगा दो सामने का दृश्य देख हैरान हो गया। उसके सामने हरियाली से लदे हुए पहाड़ थे, हवा में फूलों की सुगंध घुली हुई थी, और चारों ओर रंग-बिरंगे बाग थे। इस स्थान की सुंदरता सूरज के हृदय को चुभ रही थी वह सोचने लगा कि यह मेरे साथ आज क्या हो गया मैं तो अपने घर में सो रहा था। मैं इस सुंदर बगीचे में कैसे आ गया और ये स्थान कोई सपना है या मेरे कर्मों का बुरा फल जिसमें यह रमणीयता मुझे सदा मेरे हृदय में चुभती रहे। सूरज आशंका से कहता है नहीं नहीं मैंने इतने बुरे कर्म नहीं किए जिससे मैं इस सौंदर्य को खरीद सकूं यह इतना रमणीय है कि जिसे देखकर मेरे हृदय में हृदय पर साँप लोटने लगते हैं। मैंने तो उम्रभर पुण्य अर्जित किए और आज देखो मुझे उनका कितना भयानक फल मिला मैं अपनी वास्तविकता से दूर एक भ्रम के सौंदर्य में जी रहा हूं।

वह हैरानी से उठा और चीखने लगा यह सब सच नहीं है यह मेरे मन का भ्रम लेकिन उसकी आवाज आज किसी को प्रभावित नहीं कर रही थी जिसके आदेश पर पूरी सेना और दरबारी हां से हां मिलाते थे वो आज असमर्थ हो गया और इसे देखकर उसका मन का संदेह पक्का हो रहा था कि यह उसके बुरे कर्मों का फल है जिसके वजह से वह राजा से एक आम आदमी बन गया है जिसकी अब कोई परवाह भी नहीं करते।  

थोड़ी देर में कुछ लोग उसके नजदीक से गुजरे। उनके वस्त्र सितारों जैसे चमक रहे थे, सूरज की चमक आज  शीतल चांदनी जैसे शांत और हल्की थी जैसे किसी ने उसका पूरा तेज उसके भीतर से खींच लिया हो। उन्हीं लोगो में से एक चिल्लाने लगा सतलोक कि ट्रेन आ रही है जल्दी करो सबको इसमें चढ़ना है।

एक और बोला, “जो छूट गया, वह फिर इसी कभी ना खत्म होने वाले चक्र में फँस जाएगा—जहां बिना पहचान बिना मंजिल के इस चमकते भ्रम में अकेला रह जाएगा।"

सूरज एकदम घबरा गया। वह जिस सतलोक को जीवन भर नकारता रहा लोग अपने भ्रम से बाहर निकलने के लिए वहां जाना चाहते हैं सूरज को यकीन था कि सतलोक ट्रेन का मालिक उसे नहीं बैठने देगा क्यों कि उसने जिंदगी भर उसे नकारा है हुआ भी यही सब लोग सतलोक की ट्रेन में बैठ गए केवल सूरज ही उस चमकते दुनिया में अकेला रह गया। 

वास्तव में ट्रेन और चमकते दुनिया को कोई अस्तित्व नहीं था केवल सूरज का अस्तित्व ही स्वयं के द्वंद से लड़ रहा था। वह द्वंद नई दुनिया और सतलोक का एक मिथ्याभास करा रहा था। अंत में सूरज इसे वास्तविकता समझ कर स्वीकार कर लेता है कि उसके  कर्मों के वजह से वह चमकते दुनिया में फंस गया। यह पछतावा उसे अंदर से खोखला कर देता है और वह एक भयानक चीख के साथ उठ गया उसका यह सपना उसे सतलोक के आभासी लोक में विश्वास करा गया। उसे भी लगने लगा कि चमकते दुनिया के दुख से अच्छा है कि मैं सतलोक का वासी बन जाऊं और जब दोनों दुनिया सिर्फ मेरी चेतना का भ्रम है तो मैं क्यों ना उन लोगों का मार्ग अपनाऊ जो अपने अज्ञान के अधंकार से ढके मिथ्या लोकों को वास्तविक समझ रहे हैं।

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