भ्रम का देवदूत

रमेश एक साधारण इंसान था, लेकिन उसकी सोच उससे कहीं ज़्यादा असाधारण थी। वह अपने ही ख्यालों में इतना खोया रहता कि वह अपने आप को ही बहुत महान समझता था। अपने मन में उसने एक ऐसी दुनिया रच रखी थी जहाँ वह सबसे बुद्धिमान, सबसे महान और लोगों का मार्गदर्शक था। उसे यकीन था कि उसका जन्म कुछ विशेष उद्देश्य के लिए हुआ है। दिन-रात वह अपने इसी भ्रम में मस्त रहता – कभी खुद को नेता समझता, कभी मसीहा।

इसी दुनिया में खोया हुआ रमेश एक दिन शहर के एक पुस्तक मेले में गया। वहां उसकी मुलाकात दीया नाम की एक लड़की से हुई। दीया की आंखों में गहराई थी और मुस्कान में सादगी। पहली ही नजर में रमेश को उससे प्यार हो गया। उसे लगा जैसे दीया उसके जीवन में आई है उसकी कल्पनाओं को साकार करने के लिए। वो दीया को अपनी महानता की कहानियाँ सुनाने लगा – कैसे वह अलग है, कैसे उसमें दुनिया बदलने की ताक़त है।

दीया शुरू में उसकी बातें सुनकर मुस्कराती रही, लेकिन धीरे-धीरे उसे एहसास होने लगा कि रमेश की बातें कल्पना की उड़ान से ज़्यादा कुछ नहीं हैं। उसने रमेश से दूरी बनानी शुरू कर दी। उसके सवालों ने रमेश को विचलित कर दिया, क्योंकि उसने कभी अपने सोच को चुनौती देना सीखा ही नहीं था। धीरे-धीरे उनका रिश्ता टूट गया। रमेश फिर अकेला रह गया – मगर अब वह और भी ज़्यादा अपने महानता के भ्रम की दुनिया में डूबने लगा।

एक दिन, जब रमेश गहन उदासी और अकेलेपन से जूझ रहा था, उसने सुना कि शहर में एक तांत्रिक आया है – जो तंत्र विद्या से चमत्कार करता है। लोगों का कहना था कि वह दूसरों की मानसिक शक्तियों को जाग्रत कर सकता है। रमेश, जो खुद को एक अद्भुत इंसान मानता था, तुरंत उसके पास जा पहुँचा। तांत्रिक का नाम भैरवनाथ था। उसकी आंखों में अजीब चमक थी और उसकी बातों में रहस्य।

रमेश ने भैरवनाथ से कहा, "गुरुदेव, मुझे तंत्र सिखाइए। मैं इस संसार को बदलना चाहता हूं। मैं कोई साधारण व्यक्ति नहीं हूं।"

भैरवनाथ ने रमेश की बातें सुनीं और उसे गौर से देखा। वह रमेश के भ्रम को तुरंत समझ गया – यह एक ऐसा व्यक्ति था जो पहले ही अपनी महानता की कल्पना में कैद था। उसने सोचा, "क्यों न इसका उपयोग अपने प्रयोग के लिए करूं?" उसने रमेश को अगले दिन आने को कहा।

अगली सुबह तांत्रिक ने अपनी प्रयोगशाला में एक नशीली दवा तैयार की, जिसे पीते ही इंसान वास्तविकता से पूरी तरह कट जाए और एक अलग दुनिया में प्रवेश कर जाए। उसने वह दवा पानी में मिला दी और रमेश के आने का इंतज़ार करने लगा।

रमेश समय पर आया। भैरवनाथ ने उसे बैठाया और कहा, "ये पवित्र जल की बॉटल है। इसे पीकर तुम्हारे भीतर की शक्ति जागेगी।" रमेश ने बिना किसी संदेह के वह पानी पी लिया। भैरवनाथ ने उसे वो बॉटल दी और उसे एक मंत्र दिया उस मंत्र के बाद उसे वो पानी रोज पीना है।

पानी पीते ही उसकी आँखें बंद होने लगीं, शरीर हल्का महसूस हुआ और वह एक अजीब से trance में चला गया। उसकी कल्पनाएँ और भी गहरी और जटिल होने लगीं। अब वह खुद को ईश्वर का दूत मानने लगा – एक divine messenger, जिसे इस धरती पर किसी विशेष उद्देश्य से भेजा गया है।

अब वह शहर भर में घूमता है, लोगों को अपनी "महानता" के बारे में बताता है। वह कहता है कि उसे दिव्य संदेश प्राप्त होते हैं, और उसका कर्तव्य है कि वह मानवता को जागृत करे। कभी वह सड़कों पर प्रवचन देता है, तो कभी बच्चों को तंत्र-मंत्र सिखाने की कोशिश करता है। उसके चेहरे पर एक स्थायी मुस्कान होती है, लेकिन उसकी आंखों में सच्चाई नहीं, भ्रम होता है।

लोग अब उसे एक विद्वान मानते हैं। कुछ उसे इग्नोर करते हैं, कुछ उसका मजाक उड़ाते हैं, और कुछ दया भी करते हैं। मगर रमेश की दुनिया अब पूरी तरह से बदल चुकी है – वह उस नशे में जी रहा है, जो एक तांत्रिक ने दिया था, और जिसे उसने खुद चुना था।

तांत्रिक भैरवनाथ आज भी अपने विभिन्न मानसिक प्रयोग के लिए जाना जाता है। उसने रमेश जैसे और भी लोगों पर प्रयोग किए हैं, मगर रमेश उसका सबसे "सफल" अनुभव है – एक जीवित उदाहरण, जो यह दिखाता है कि भ्रम कितनी गहराई तक किसी इंसान को निगल सकता है।

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