कविता आनंद की अनुभूति

 मैं हमेशा एक जगह बैठा रहता हूं 

कोई विचार नहीं कोई तरंग नहीं

मैं चुप चाप बस देखता हूं 

खुद की हकीकत को 

दुनिया की शोहरत को 

और दुख मय जीवन को 

मुझ से कोई पूछता भी नहीं 

मैं किसी को बताना भी नहीं चाहता 

मैं ये तकलीफ फैलाना भी नहीं चाहता 

शहर के लोग अपने आनंद में हैं 

जो शायद जल्द ही खत्म हो जाएगा 

मैं कुछ भी नहीं करूंगा 

मैं बस चुप चाप देखता हूं 

उन जगहों को जहां 

आज भी आनंद के लिए 

लोग अपने आप से जुझ रहे हैं 

उनमे से कोई पूछता भी नहीं 

कि यह आनंद की खोज कहाँ रुकेगी 

शायद मैं बताना भी नहीं चाहता 

कि आनंद की खोज हमेशा रहेगी 

शहर की इस खौफ भरी जिंदगी में 

एक मुसाफिर फिर से वही 

बात दोहराता है 

मैं चुप चाप बस देखता हूं 

मुसाफिर आज भी वही चाहता है 

आनंद की अनुभूति

और अपने दुख से मुक्ति  

-अरुण चमियाल 



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