अध्याय 1 — ऑटोइम्यून
धरती पर लगातार एक वायरस फैल रहा है एक ऐसी छाया की तरह जिसका कोई इलाज नहीं था —लेकिन वह वायरस हर DNA पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा था। यह एक मेज़बान कोशिका (Host Cell) में घुसकर उसके मशीनरी (Machinery) को हाईजैक (Hijack) करता है, और DNA को कॉपी (Copy) करता है, नए वायरस बनाता है, और फिर इन नए वायरसों को बाहर निकालकर दूसरे सेल्स को संक्रमित करता है,
शहरों में अस्पताल बोझ से टूट चुके थे। वैज्ञानिक लैबों में लगातार गिरती हुई उम्मीद को फिर से उठाने की कोशिश में लगे थे। और हर सेकेंड के साथ मानव-शरीर अपनी ही कोशिकाओं से हारता जा रहा था।
लेकिन एक व्यक्ति था, जो इस नियम से थोड़ा हटकर था -
अरुण।
वायरस उसके DNA तक पहुँचता था,
उसे छूता था…
लेकिन जैसे किसी अदृश्य दीवार से टकराकर आगे बढ़ने से रुक जाता था। डीएनए म्यूटेशन के कारण अरुण के शरीर में वायरस अपना प्रभाव नहीं दिखा पाता था। उसे जो भी अनुवांशिक रोग होते वे अपने आप ठीक हो जाते थे।
वैज्ञानिक इस बात से उलझन में थे— क्योंकि बाकी सभी लोगों में यही वायरस तेज़ी से घुसकर बीमारियाँ उगल रहा था। पर अरुण के मामले में कुछ ऐसा था, जिसे कोई समझ नहीं पा रहा था। और शायद खुद अरुण भी नहीं।
वह जानता था कि दुनिया की उम्मीदें धीरे-धीरे उसके कंधों पर टिक रही हैं। लोग उसे “उम्मीद की आख़िरी किरण” कहने लगे थे।
लेकिन सच तो यह था—
अरुण खुद भी सुरक्षित नहीं था। उसके शरीर में एक पुरानी ऑटोइम्यून विकार छिपी बैठी थी, जो वायरस से भी ज़्यादा चुपचाप, ज़्यादा खतरनाक रूप में अपना असर दिखा सकती थी।
डॉक्टरों ने उसे चेतावनी दी थी:
“यह mutation, तुम्हारी बीमारी को ज्यादा देर तक नहीं रोक पाएगा। तुम्हारी प्रतिरक्षा पहले ही कमजोर है… और तुम खुद को छोड़कर पूरी दुनिया का इलाज ढूँढने में लगे हो। अरुण, तुम्हें इलाज की ज़रूरत है—इससे पहले कि देर हो जाए।”
लेकिन अरुण ने इनकार कर दिया था। उसका मानना था कि वह खुद को बाद में देख लेगा—
पहले अपनी प्रेमिका अमिता को जिसके दिमाग में फ्यूचर के वैज्ञानिको ने माइक्रो चिप लगा रखी थी।
अरुण को पता नहीं था
कि अमिता में छिपी रहस्यमय शक्ति जिसे वह महत्त्वहीन समझ रहा है, आने वाले समय में सबसे बड़ा मोड़ बनेगी—
और शायद वही मानवता की अंतिम उम्मीद की कुंजी भी।
फिलहाल, केवल एक बात तय थी—
अरुण को छूकर भी
वायरस आगे नहीं बढ़ पा रहा था।
क्यों?
यह कोई नहीं जानता था…
और अभी भी नहीं।

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